रक्षा बंधन

रक्षा बंधन
बंधन धागों के ........
रक्षाबंधन जीवन को प्रगति मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र त्योहार है। रक्षा-बंधन भाई-बहन के स्नेह ममता की डोर में बँधा ऐसा पर्व है, जिसे परस्पर विश्वास की डोर ने सदियों से बाँध रखा है। हिन्दू मान्यता के अनुसार श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला यह त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाइयों की कलाई में राख‍‍‍...ी बांध कर माथे पर तिलक लगाकर सदैव उनकी दीर्घायु, विजय व प्रसन्‍नता के लिए प्रार्थना करती हैं ताकि विपत्ति के दौरान वे अपनी बहन की रक्षा कर सकें। बदले में भाई प्रतिज्ञा करता है कि यथाशक्ति मैं अपनी बहन की रक्षा करूंगा। अपनी बहनों की हर प्रकार के अहित से रक्षा करने का वचन उपहार के रूप में देते हैं। इन राखियों के बीच शुभ भावनाओं की पवित्र भावना होती है। भाई-बहन का लगाव व स्नेह ताउम्र बरकरार रहता है, क्योंकि बहन कभी बाल सखा तो कभी माँ तो कभी पथ-प्रदर्शक बन भाई को सिखाती है कि जिंदगी में यूँ आगे बढ़ो। इसी तरह भाई कभी पिता तो कभी मित्र बन बहन को आगे बढ़ने का हौसला देता है। यह त्‍यौहार मुख्‍यत: उत्तर भारत में मनाया जाता है।

रक्षा का अर्थ ........
रक्षा का अर्थ है बचाव। मध्यकालीन भारत में जहां कुछ स्थानों पर, महिलाएं असुरक्षित महसूस करती थीं, वे पुरूषों को अपना भाई मानते हुए उनकी कलाई पर राखी बांधती थीं। इस प्रकार राखी भाई और बहन के बीच प्यार के बंधन को मजबूत बनाती है। यह जीवन की प्रगति और मैत्री की ओर ले जाने वाला एकता का एक बड़ा पवित्र कवित्त है। मध्य कालीन इतिहास में एक ऐसी घटना दिल्ली में मिलती है जिसमें चित्तौड की रानी कर्मवती ने दिल्ली के मुगल बादशाह हुमायूं के पास राखी भेजकर अपना भाई बनाया था। हुमायूं ने राखी की इज्जत की और उसके सम्मान की रक्षा के लिए गुजरात के बादशाह से युद्ध किया था।

रक्षा बंधन पोराणिक कथाये ........

रक्षा बंधन का इतिहास पोराणिक भी है। हिंदू पुराणों की कथाओं के अनुसार, महाभारत में पांडवों की पत्‍नी द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्‍ण की कलाई से बहते खून (श्री कृष्‍ण ने भूल से खुद को जख्‍मी कर दिया था) को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। इस प्रकार उन दोनो के बीच भाई और बहन का बंधन विकसित हुआ था, तथा श्री कृष्‍ण ने उसकी रक्षा करने का वचन दिया था। समय आने पर उस वचन को निभाया भी था। जब दुशासन ने द्रोपदी का चिर हरण किया था, तो उस समय स्वयम भगवान ने द्रोपदी की लाज भरी सभा में चिर बढ़ा कर बचाई थी।

रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण कर बलि राजा के अभिमान को इसी दिन चकानाचूर किया था। इसलिए यह त्योहार 'बलेव' नाम से भी प्रसिद्ध है। महाराष्ट्र राज्य में नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से यह त्योहार विख्यात है। इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं। रक्षाबंधन के संबंध में एक अन्य पौराणिक कथा भी प्रसिद्ध है। देवों और दानवों के युद्ध में जब देवता हारने लगे, तब वे देवराज इंद्र के पास गए। देवताओं को भयभीत देखकर इंद्राणी ने उनके हाथों में रक्षासूत्र बाँध दिया। इससे देवताओं का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने दानवों पर विजय प्राप्त की। तभी से राखी बाँधने की प्रथा शुरू हुई। दूसरी मान्यता के अनुसार ऋषि-मुनियों के उपदेश की पूर्णाहुति इसी दिन होती थी। वे राजाओं के हाथों में रक्षासूत्र बाँधते थे। इसलिए आज भी इस दिन ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बाँधते हैं। इस दिन ब्रा‍ह्मण अपने पवित्र जनेऊ बदलते हैं और एक बार पुन: धर्मग्रन्‍थों के अध्‍ययन के प्रति स्‍वयं को समर्पित करते हैं।

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