भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चद्रमा का दर्शन करना कर सकता है कलंकित

 भगवान् श्रीगणेश कोई साधारण देवता नहीं है। वे साक्षात् अनन्तकोटि-ब्रह्माण्डनायक, परब्रह्म परमात्मा ही है। सृष्टि के निर्माण, पालन और संहार को निर्विघ्न चलाने के लिए ब्रह्मा-विष्णु-महेश भी इनका ध्यान करते है। ऋग्वेद का कथन है- 'न ऋचे त्वत् क्रियते किं चनारे।' हे गणेश! तुम्हारे बिना कोई भी कर्म प्रारंभ नहीं किया जाता। 'आदौ पूज्यो विनायक:'- इस उक्ति के अनुसार समस्त शुभ कार्यो के प्रारंभ में सिद्धिविनायक की पूजा आवश्यक है। विघ्नेश्वर प्रसन्न होने पर 'विघ्नहर्ता' बनकर जब कार्य-सिद्धि में सहायक होते है, तब वे 'सिद्धिविनायक' के नाम से पुकारे जाते है। सिद्घिविनायक गणेश जी का सबसे लोकप्रिय रूप है। गणेश जी जिन प्रतिमाओं की सूड़ दाईं तरह मुड़ी होती है, वे सिद्घपीठ से जुड़ी होती हैं और उनके मंदिर सिद्घिविनायक मंदिर कहलाते हैं। कहते हैं कि सिद्धि विनायक की महिमा अपरंपार है, वे भक्तों की मनोकामना को तुरंत पूरा करते हैं। गणपति की कृपा के बिना किसी भी कार्य का निर्विघ्न सम्पन्न होना संभव नहीं है क्योंकि वे विघ्नों के अधिपति है। मान्यता है कि ऐसे गणपति बहुत ही जल्दी प्रसन्न होते हैं और उतनी ही जल्दी कुपित भी हो जाते है । परवर्ती कथा के अनुसार एक बार क्षमता से अधिक मोदक खा लेने के कारण गणेश के मुख से मोदक बाहर निकलने लगा जिसे रोकने के लिए समीप से जाते हुए सर्प को पकड़कर गणेश जी ने अपने पेट में लपेट लिया। सर्प के सरकने से गणेश जी का वाहन मूषक भयवश पीछे हटने लगा जिससे गणेश असंतुलित होकर गिर पड़े। इस दृश्य को देखकर चंद्रमा को हंसी आ गयी। उनकी हंसी सुनकर गणेश जी को गुस्सा आ गया और उन्होंने अपना एक दांत तोड़कर चंद्रमा पर प्रहार किया। एक दांत होने के कारण वे एकदंत के रूप में भी जाने गये। तब भगवान गणेश जी ने चंद्रमा को श्राप दिया कि जो कोई भी भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करेगा उस पर कलंक अवश्य लगेगा तभी से इस दिन चद्रमा के दर्शन नही किये जाने की परम्परा है। गणेशपुराण में भी यह वर्णित है कि भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्रमा देख लेने पर कलंक अवश्य लगता है। ऐसा गणेश जी के अमोघ शाप के कारण है। स्वयं सिद्धिविनायक का वचन है-
     भाद्रशुक्लचतुथ्र्या यो ज्ञानतोऽज्ञानतोऽपि वा। अभिशापी भवेच्चन्द्रदर्शनाद् भृशदु:खभाग्॥
'जो जानबूझ कर अथवा अनजाने में ही भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करेगा, वह अभिशप्त होगा। उसे बहुत दुख उठाना पड़ेगा।' श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कन्ध के 57 वें अध्याय में यह कथा लिकी हुए है कि भाद्र-शुक्ल-चतुर्थी का चंद्र देख लेने के कारण ही भगवान श्रीकृष्ण को स्यमन्तक मणि की चोरी का मिथ्या कलंक लगा था।  भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन चंद्र-दर्शन हो जाने पर उसका दोष दूर करने के लिए श्रीमद्भागवत में वर्णित इस प्रसंग को पढ़ना अथवा सुनना चाहिए।

इसलिए किसी भी देवता के पूजन में सर्वप्रथम श्रीगणेश की पूजा होती है। ऐसा न करने पर वह व्रत-अनुष्ठान निष्फल हो जाता है। यदि किसी कारणवश देव-पूजन के प्रारंभ में विघ्नराज गणपति की पूजा नहीं की जाती है तो वे कुपित होकर उस साधना का फल नष्ट कर देते है। इसी कारण सनातनधर्म में गणेशजी की प्रथम पूजा का विधान बना। मानव ही नहीं वरन् देवगण भी प्रत्येक कर्म के शुभारंभ में विघ्नेश्वर विनायक की पूजा करते है। पुराणों में इस संदर्भ में अनेक आख्यान वर्णित है।
वस्तुत: 'सिद्धिविनायक चतुर्थी'  हमें ईश्वर के विघ्नविनाशक स्वरूप का साक्षात्कार कराती है जिससे अभीष्ट-सिद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है। जीवन को निर्विघ्न बनाने के लिए आइये हम सब इनकी स्तुति करे-
 
   आदिपूज्यं गणाध्यक्षमुमापुत्रं विनायकम्। मङ्गलं परमं रूपं श्रीगणेशं नमाम्यहम्॥

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