तीज - महिलाओं का त्यौहार
तीज - महिलाओं का त्यौहार
तीज का त्यौहार उत्तरी भारत में बहुत जोश और उल्लास के साथ मनाया जाता है. यह त्यौहार खासतौर पर महिलाओं का त्यौहार है. तीज का आगमन वर्षा ऋतु के आगमन के साथ ही आरंभ हो जाता है. सावन के महीने के आते ही आसमान काले मेघों से भर जाता है और वर्षा की बोछार पड़ते ही हर वस्तु नवरूप को प्राप्त करती है. ऎसे में भारतीय लोक जीवन में हरियाली तीज या कजली तीज महोत्सव मनाया जाता है. श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन श्रावणी तीज, हरियाली तीज मनायी जाती है इसे मधुस्रवा तृतीय या छोटी तीज भी कहा जाता है. जिसमें सावन के आते ही चारों ओर मनमोहक वातावरण की सुंदर छटा फैल जाती है. प्रकृति नवयौवन रूप लिए अवतरित होती दिखाई देती है. श्रावण माह के शुक्ल पक्ष में तृतिया तिथि को महिलाएं हरियाली तीज के रुप में मनाती हैं इस समय वर्षा ऋतु की बौछारें प्रकृति को पूर्ण रूप से भिगो देती हैं बरसात अपने चरम पर होती है प्रकृति में हर तरफ हरियाली की चादर सी बिछी होती है और इसी कारण से इस त्यौहार को हरियाली तीज कहा जाता है. हरियाणा में इसे हरियाली तीज के नाम से जाना जाता है. हरियाली तीज मुख्य रूप से हरियाली और अच्छी फसल होने की उम्मीद दिलाता है.
इस अवसर पर विवाह के पश्चात पहला सावन आने पर नव विवाहिता लड़की को ससुराल से पिहर बुला लिया जाता है विवाहिता स्त्रियों को उनके ससुराल पक्ष की ओर से सिंधारा भिजवाया जाता है जिसमें वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई इत्यादि सामान भेजा जाता है.महिलाए लहंगा सूट और साड़ियों आदि हरे रंग के कपड़े पहनती हैं. वे हरी चूड़ियाँ और सुंदर मेहँदी पैटर्न के साथ अपने हाथों को सजाती है. तीज पर मेहंदी लगाने और झूले झूलने का विशेष महत्त्व रहा है. लोक गीतों को गाते हुए झूले झूलती हैं. तीज के दिन खुले स्थान पर बड़े–बड़े वृक्षों की शाखाओं पर, घर की छत की कड़ों या बरामदे में कड़ों में झूले पड़ जाते हैं जिन पर मल्हार गाते हुए मेंहदी रचे हुए हाथों स्त्रियां झूला झूलती हैं हरियाली तीज के दिन अनेक स्थानों पर मेले लगते हैं.
सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं. देश के पूर्वी इलाकों में लोग इसे हरियाली तीज के नाम से जानते हैं. इस समय प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित हो जाता है जगह-जगह झूले पड़ते हैं और स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झूलते हैं.
सावन की तीज का विशेष धार्मिक महत्व रहा है. इस पर एक धार्मिक किवदंती प्रचलित है जिसके अनुसार पौराणिक काल में देवी पार्वती भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए व्रत रखती हैं. जिस कारण उन्हें भगवान शिव का मिलन प्राप्त हुआ था. इसके अतिरिक्त कहा जात है कि श्रावण शुक्ल तृतीया के दिन देवी पार्वती ने सौ वर्षों की तपस्या साधना पश्चात भगवान शिव को प्राप्त कर पातीं हैं. इसी कारण से विवाहित महिलाएं इस व्रत को अपने सुखी विवाहित जीवन की कामना के लिए करती हैं. इस दिन स्त्रियां माँ पार्वती का पूजन - आह्वान करती हैं अविवाहित और विवाहित स्त्री दोनों ही इस व्रत को कर सकती हैं. समस्त उत्तर भारत में तीज पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है.
बुन्देलखंड, झाँसी, महोबा, ओरछा आदि क्षेत्रों में इसे हरियाली तीज के नाम से व्रतोत्सव के रूप में मनाते हैं तो वहीं पूर्वी उत्तर प्रदेश, बनारस, गोरखपुर, जौनपुर, सुलतानपुर आदि जिलों में इसे कजली तीज के रूप में मनाया जाता है. तीज के आगमन पर स्त्रियाँ झूले में झूलकर लोकगीतों को गाती हैं


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