सभी देवों में प्रथम पूजनीय हैं सिद्धिविनायक
गणेश जी की पूजा सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय सांस्कृतिक और धार्मिक पर्व के रूप में मनाई जाती है। प्रथम पूज्य गणनायक गणेश जी का जन्मोत्सव पूरे देश में गणेश चतुर्थी को बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। हर घर के मंदिर में, भक्तों के हृदय में गणनायक अपने निराले स्वरूप में विराजमान हैं। मोदक उन्हें बहुत प्रिय है। अत: मोदक का भोग लगाकर भक्त उनसे प्रार्थना करते है कि वे हमारे घर, समाज और राष्ट्र को धन धान्य से परिपूर्ण करें। भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को सिद्धि विनायक भगवान गणपति के जन्म की तिथि माना गया है। इसलिए भक्त लोग भगवान गणेश की प्रतिमा को अपने घर या किसी सार्वजनिक स्थान पर प्रतिष्ठित करते हैं। अनंत: चतुर्दशी को गणेश जी का विसर्जन होता है। इस बीच धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन से राष्ट्र की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता में अभिवृद्धि की प्रेरणा मिलती है। वेदों और पुराणों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि भाद्रपद शुक्ल पक्ष चतुर्थी को दोपहर में गणेश जी का जन्म हुआ था।
श्रीगणेशपुराण में भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को गणपति के आविर्भाव की तिथि माना गया है। स्कन्दपुराण में भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से इस तिथि के माहात्म्य का गुणगान करते हुए कहते है-
सर्वदेवमय: साक्षात् सर्वमङ्गलदायक:। भाद्रशुक्लचतुथ्र्या तु प्रादुर्भूतो गणाधिप:॥
सिद्धयन्ति सर्वकार्याणि मनसा चिन्तितान्यपि। तेन ख्यातिं गतो लोके नाम्ना सिद्धिविनायक:॥
समस्त देवताओं की शक्ति से सम्पन्न मंगलमूर्ति गणपति का भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के दिन आविर्भाव हुआ। इस तिथि में आराधना करने पर वे सब कार्यो को सिद्ध करते है तथा मनोवांछित फल देते है। आराधकों का अभीष्ट सिद्ध करने के कारण ही वे ‘सिद्धिविनायक’ के नाम से लोक-विख्यात हुए है।
पुराणों के अनुसार एक बार माता पार्वती जी ने अपने शरीर में उबटन लगाकर उससे अपने शरीर से मैल निकाला। शरीर के उस मैल से माँ पार्वती ने मानव आकृति बनाई और उसमें प्राण डालकर जीवित कर दिया। उस बालक को माँ पार्वती अपने दरवाजे पर बिठाकर किसी को अंदर न आने देने की आज्ञा देकर स्नान करने चली गई। कुछ देर बाद स्वयं भगवान शिवजी वहाँ आये तो उन्होंने दरवाजे पर एक बालक को देखा। जब भगवान शंकर अंदर जाने लगे तब उस बालक ने शिवजी को अंदर जाने से रोका। फलस्वरूप दोनों में भीषण युद्ध हुआ और क्रोध में आकर शिवजी ने उसका सिर काट दिया। जब पार्वती जी को इस घटना का पता चला तो वह विलाप करने लगी। उन्हें मनाने के लिये शंकर जी ने अपने गणों को आदेश दिया कि जो भी प्राणी अपनी संतान से विमुख होकर सो रहा हो उस संतान का सिर काटकर ले आओ। गण भगवान की आज्ञा का पालन करने निकल पड़े। गणों को एक हथनी अपने बच्चे की ओर पीठ करके सोयी हुए मिल गयी और गण उसका सिर काटकर ले आए। उस शीश को भगवान भोले नाथ ने बालक के धड़ से जोडक़र उसे जीवित कर दिया। यही बालक ‘गणेश जी’ के नाम से प्रतिष्ठित हुआ। वर्तमान में सभी शुभाशुभ कार्यों के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन चंचला लक्ष्मी पर बुद्धि के देवता गणेश जी के नियंत्रण के प्रतीक स्वरूप की जाती है। दूसरी ओर समृद्धि के देवता कुबेर के साथ उनके पूजन की परंपरा सिद्धि दायक देवता के रूप में मिलती है। वैसे तो गणेश जी के अनेकों नाम हैं, लेकिन उनमें से सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्न विनाशक, विनायक, धुम्रकेतु, गणेशाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन आदि प्रमुख नाम हैं।
वैसे तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में गणेशोत्सव मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में यह त्योहार बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। वहां पर गणेश जन्म दिवस पर हर घर और पंडालों में गणेश जी की प्रतिमा रखी जाती हैं और उसका पूजन आदि किया जाता है। यह उत्सव अपने आप में अनोखा व निराला होता है। दस दिन तक पूजा-अर्चना के बाद उस प्रतिमा का विसर्जन करने की परम्परा है। विसर्जन के दौरान पूरे शहर में जलूस निकाला जाता है और गणपति बप्पा मोर्या आदि नारों से पूरा वातावरण झूम उठता है । भगवान का समुद्र में विसर्जन किया जाता है। बड़ी संख्या में भीड़ इस उत्सव में जुटती है तथा दूर-दराज से श्रद्धालु इसका आनंद लेने के लिए यहां पहुंचते हैं। समय के अनुसार अब यह प्रचलन उत्तरी भारत में भी बढ़ता जा रहा है। श्रद्धालु अपने-अपने तरीके से सिद्धि विनायक का जन्मोत्सव मनाते हैं।
पुराणों के अनुसार एक बार माता पार्वती जी ने अपने शरीर में उबटन लगाकर उससे अपने शरीर से मैल निकाला। शरीर के उस मैल से माँ पार्वती ने मानव आकृति बनाई और उसमें प्राण डालकर जीवित कर दिया। उस बालक को माँ पार्वती अपने दरवाजे पर बिठाकर किसी को अंदर न आने देने की आज्ञा देकर स्नान करने चली गई। कुछ देर बाद स्वयं भगवान शिवजी वहाँ आये तो उन्होंने दरवाजे पर एक बालक को देखा। जब भगवान शंकर अंदर जाने लगे तब उस बालक ने शिवजी को अंदर जाने से रोका। फलस्वरूप दोनों में भीषण युद्ध हुआ और क्रोध में आकर शिवजी ने उसका सिर काट दिया। जब पार्वती जी को इस घटना का पता चला तो वह विलाप करने लगी। उन्हें मनाने के लिये शंकर जी ने अपने गणों को आदेश दिया कि जो भी प्राणी अपनी संतान से विमुख होकर सो रहा हो उस संतान का सिर काटकर ले आओ। गण भगवान की आज्ञा का पालन करने निकल पड़े। गणों को एक हथनी अपने बच्चे की ओर पीठ करके सोयी हुए मिल गयी और गण उसका सिर काटकर ले आए। उस शीश को भगवान भोले नाथ ने बालक के धड़ से जोडक़र उसे जीवित कर दिया। यही बालक ‘गणेश जी’ के नाम से प्रतिष्ठित हुआ। वर्तमान में सभी शुभाशुभ कार्यों के प्रारंभ में गणेश जी की पूजा की जाती है। लक्ष्मी जी के साथ गणेश जी का पूजन चंचला लक्ष्मी पर बुद्धि के देवता गणेश जी के नियंत्रण के प्रतीक स्वरूप की जाती है। दूसरी ओर समृद्धि के देवता कुबेर के साथ उनके पूजन की परंपरा सिद्धि दायक देवता के रूप में मिलती है। वैसे तो गणेश जी के अनेकों नाम हैं, लेकिन उनमें से सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्न विनाशक, विनायक, धुम्रकेतु, गणेशाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन आदि प्रमुख नाम हैं।
वैसे तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में गणेशोत्सव मनाया जाता है, लेकिन महाराष्ट्र में यह त्योहार बहुत श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाया जाता है। वहां पर गणेश जन्म दिवस पर हर घर और पंडालों में गणेश जी की प्रतिमा रखी जाती हैं और उसका पूजन आदि किया जाता है। यह उत्सव अपने आप में अनोखा व निराला होता है। दस दिन तक पूजा-अर्चना के बाद उस प्रतिमा का विसर्जन करने की परम्परा है। विसर्जन के दौरान पूरे शहर में जलूस निकाला जाता है और गणपति बप्पा मोर्या आदि नारों से पूरा वातावरण झूम उठता है । भगवान का समुद्र में विसर्जन किया जाता है। बड़ी संख्या में भीड़ इस उत्सव में जुटती है तथा दूर-दराज से श्रद्धालु इसका आनंद लेने के लिए यहां पहुंचते हैं। समय के अनुसार अब यह प्रचलन उत्तरी भारत में भी बढ़ता जा रहा है। श्रद्धालु अपने-अपने तरीके से सिद्धि विनायक का जन्मोत्सव मनाते हैं।



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