जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है या किसी भी रुप से पितृ दोष घर में हो तो चैत्र चौदस के दिन मिलती है पित्तरों को मुक्ति। शास्त्रों में कहा गया है कि पृथुदक में पित्तरों के निमित त्रिपिंडी श्राद्ध और तर्पण करने से पित्तर खुश होकर देते है अपना आर्शीवाद। धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से है मेले का विशेष महत्व, डुबकी लगाने से होगी अश्वमेध यज्ञ के फल की प्राप्ति।
विश्व प्रसिद्ध चैत्र चौदस मेले में हिंदू और सिख एकता का रहस्य छिपा हुआ है। इस मेले में पंजाब और हरियाणा के कोने-कोने से आकर लोग एक-दूसरे के गले लगते हैं, बल्कि सरस्वती तीर्थ के पवित्र जल में डुबकी लगाकर अपने पापों को दूर करने का प्रयास करते हैं। इसलिए चैत्र चौदस मेले का धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से एक विशेष महत्व माना जाता है। कुरुक्षेत्र 48 कोस की इस परिधि में पिहोवा सरस्वती तीर्थ या पृथुदक तीर्थ पर लगने वाले चैत्र चौदस मेले की हर साल बेसब्री से इंतजार की जाती है। जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष विद्यमान है उनके लिये चैत्र चौदस को इस दोष से मुक्ति मिल सकती हैं क्योंकि इस दिन पित्तरों के निमित जो भी कर्म किया जाता है उसकी प्राप्ति पित्तरों को होती है। उत्तर भारत का विश्व प्रसिद्ध पेहोवा में सरस्वती के पवित्र तट पर इस दिन बहुत बड़ा मेला भी लगता है। दूर-दराज से लोग अपने पित्तरों का तर्पण करवाने के लिये यहां पर पहुंचते हैं। जिन लोगों की कुडली या घर में पितृ दोष है उन्हें अपने पित्तरों के निमित यहां यानि की कुरुक्षेत्र के पिहोवा में पृथुदक तीर्थ पर सरस्वती के पवित्र तट पर अपने पूर्वजों के निमित पिंड़ दान करवाना चाहिए। त्रिपिंड़ी श्राद्ध करवाने से पित्तरों को प्रभु की कृपा प्राप्त होती हैं व पित्तर भी खुश होते हैं तथा वह अपनी संतान को आर्शीवाद देते है, जिससे घर में सुख शांति बनी रहती है। घर में लक्ष्मी की कृपा व वंश में वृद्धि भी होती है।
इस तीर्थ का उल्लेख महाभारत और पुराणों में बारीकी से किया गया है। पुराणों में स्पष्ट किया गया है कि पिहोवा शब्द पृथुदक शब्द से बिगडक़र बना है। वेन के पुत्र पृथु के नाम से इस तीर्थ का नाम पृथुदक हुआ। वेन कोड़ से पीडि़त था। उसने यहां स्नान किया और कोड़ मुक्त हो गया। जिस स्थान पर उसका पिता कोड़ मुक्त हुआ था, उसी जगह सरस्वती के तट पर पृथु ने पिता की मृत्यु के पश्चात उसका क्रिया कर्म एंव श्राद्घ किया तथा सभी प्राणियों को जल प्रदान किया। इसलिए वह पृथुदक कहलाया। इस तीर्थ में स्नान का अति महत्व है। यहां स्नान करने से सारे पाप नष्टï हो जाते है तथा व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ की फल की प्राप्ति के साथ-साथ स्वर्गलोक भी प्राप्त हो जाता है। वैसे तो इस स्थल पर पूरा वर्ष लोग अपने पितरों की आत्मा की शान्ति के लिए निमित पिण्ड दान व स्नान करने आते हैं, लेकिन चैत्र चौदस को यहां स्नान करने का विशेष महत्व माना गया है। इसी दिन यहां विशाल मेला लगता है जिसमें देश के कोने-कोने से लाखों यात्री पहुंच कर अपने पितरों की आत्मिक शांति के लिए पिण्डदान व कर्मकांड करते है। ऐसी धारणा है कि यहां पिण्ड दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पुराणों के अनुसार पाण्डवों के बड़े भाई युधिष्ठिïर ने महाभारत के युद्घ में अपने सगे सम्बन्धि का यहीं पिण्ड दान करवाया था। भगवान कृष्ण और शिव के अलावा गुरू नानक देव व गुरू गोबिन्द सिंह जी भी यहां पधारे। महाराजा रणजीत सिंह इसी तीर्थ पर अपने माता जी का कर्मकाण्ड करवाने आए। आज भी यह प्रथा निरन्तर जारी है। सरस्वती तीर्थ पर चैत्र चौदस को स्नान का विशेष महत्व माना गया है। इस दिन यहां विशाल मेला लगता है। इस वर्ष चैत्र चौदस का मेला 28 से 30 मार्च तक लग रहा है, जबकि चैत्र चोदस का मुख्य स्नान को है।


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