बैकुंठ चतुर्दशी
बैकुंठ
चतुर्दशी
कार्तिक
मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुंठ चतुर्दशी कहते हैं। सर्व फल की प्राप्ति का व्रत कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है बैकुंठ चतुर्दशी व्रत। मान्यता है कि
इस दिन भगवान शिव और विष्णु की पूजा करने से सभी
मनोकामना पूर्ण होती है। कल बैकुंठ चतुर्दशी है और शाम चार बजकर 56 मिनट पर पंचक भी खत्म हो रहा
है।
हमारे कई
धर्मग्रंथो में इसका उल्लेख मिलता है, निर्णय सिन्धु में इसका विवरण दिया हुआ है। इसके इलावा स्मृति कोस्तुम और पुरुषार्थ चिंतामणि में भी इसका विवरण
मिलता है कि कार्तिक मॉस के शुक्ल पक्ष कि चतुर्दशी को हेमलंब वर्ष में - अरुणोदय काल में ब्रह्म
मुहूर्त में स्वयं भगवान ने वाराणसी में मणि कर्णिका घाट पर स्नान किया था। पाशुपत व्रत करके
विश्वेश्वर ने पूजा कि थी, तब
से इस दिन को काशी विश्वनाथ स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। एक बार श्रीविष्णु देवाधिदेव का पूजन करने के लिए काशी पधारे। वहां मणिकार्णिका घाट पर
स्नान कर उन्होंने एक हजार स्वर्ण कमल पुष्पों से भगवान विश्वनाथ के पूजन का संकल्प किया। लेकिन,
जब वे पूजन करने लगे तो महादेव ने उनकी भक्ति की
परीक्षा लेने को एक कमल का पुष्प कम कर दिया। यह देख श्रीहरि ने सोचा कि मेरी आंखें भी तो कमल जैसी
ही हैं और उन्हें चढ़ाने को प्रस्तुत हुए। तब महादेव प्रकट हुए और बोले, हे हरि! तुम्हारे समान संसार में दूसरा कोई मेरा
भक्त नहीं है। आज की यह कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी अब बैकुंठ चतुर्दशी कहलाएगी। इस दिन व्रतपूर्वक
पहले आपका पूजन करने वाला बैकुंठ को प्राप्त होगा। कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी
श्रीहरि और महादेव के ऐक्य का प्रतीक है। निर्णय सिंधु के अनुसार जो एक हजार कमल पुष्पों से
श्रीविष्णु के बाद शिव की पूजा-अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त हो बैकुंठ धाम पाते हैं। इस दिन व्रत कर तारों की
छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के
तट पर 14 दीपक जलाने की परंपरा है।
स्मृतिकौस्तुभ और पुरुषार्थ चिंतामणि के अनुसार इसी दिन भगवान शिव ने करोड़ों सूर्यो की कांति के समान
वाला सुदर्शन चक्र श्रीविष्णु को प्रदान किया था।
एक अन्य
कथानक के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के ठीक एक दिन पहले पड़ने वाले इस व्रत का एक महत्व यह भी है
कि यह व्रत देवोत्थानी एकादशी के ठीक तीन दिन बाद ही होता है। एक बार नारदजी बैकुंठ
में भगवान विष्णु के पास गये । विष्णुजी ने नारद जी से आने का कारण पूछा
। नारद जी बोले,”हे भगवान! आपको पृथ्वी वासी कृपा विधान कहते है । किन्तु इससे तो केवल आफ प्रिय
भक्त ही तर हो पाते है साधारण नर नारी नही । इसलिए कोई ऐसा उपाय बताईये जिससे साधारण नर नारी भी आपकी कृपा मे
पात्र बन जाए।“ इस पर भगवान बोले, ”हे नारद! कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को जो नर नारी व्रत का पालन करते हुए भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करेगे उसकी स्वर्ग
प्राप्त होगा । लेकिन, पूजा रात्रिकाल में की जानी चाहिए। “ इसके बाद भगवान विष्णु ने जय विजय को बुलाकर आदेश दिया कि कार्तिक
शुक्ल चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुंले रखे जाये । भगवान ने यह भी बताया
कि इस दिन जो मनुष्य किंचित मात्र भी मेरा नाम लेकर पूजा करेगा उसे
बैकुण्ठधाम प्राप्त होगा।
श्रीमद भागवत के सातवे स्कन्द
के पांचवे अध्याय के श्लोक २३ व २४ वें में दिया गया है।
श्रवण
कीर्तन विष्णो: स्मरण याद्सेवनम, अर्चन वन्दन दास्य सख्यामातम निवेदनम।
अर्थात कथाएँ
सुनकर , कीर्तन करके , नाम स्मरण करके , विष्णु जी की मूर्ति के रूप में, सखाभाव से आप अपने को श्री विष्णु जी को समर्पित करें।
विश्वास स्तर बढ़ने के लिए इस दिन श्री विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर को नहला धुलाकर कर अच्छे वस्त्र पहना कर मूर्ति सेवा स्वर भक्ति करनी चाहिए। मंत्र हैं
'ॐ
नमो भगवते वासुदेवाय'
नाम और
प्रसिद्धि कि
कामना रखने वाले को इस दिन श्री विष्णु जी की पूजा करके यानि पचोपचार पूजा यानि धूप ,
दीप नवैद्द गंध आदि से पूजा करनी चाहिए। तन्त्रशास्त्र
के मतानुसार
श्री विष्णु जी को अक्षत नहीं चढ़ाना चाहिए और कहना चाहिए –
'श्रीघर
माधव गोपिकवाल्लंभ , जानकी
नायक रामचंद्रभये'
बेहतर
नौकरी और कैरियर के लिए - बैकुन्ठ चतुर्दशी के दिन नतमस्तक होकर भी विष्णु को प्रणाम
करना चाहिए और सप्तारीशियों का आवाहन उनके नामों से करना चाहिए। वे
नाम हैं - मरीचि, अत्रि,
अंगीरा, पुलत्स्य,
ऋतू और वसिष्ठ। आहवाहन
के बाद सप्तऋषियों से निवेदन करना चाहिए कि वे नारद से कहें कि वे श्री विष्णु जी के दास के रूप में आपकी
स्वीकृति करवा दें। दांपत्य सुख कि कामना रखने वालों को श्री विष्णु को
वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सच्चे भाव से, मित्र
की तरह स्मरण
करें और उनसे अपनी इच्छा कहें।
बाद में श्री राम की यह स्तुति
पढनी चाहिए –
'श्री
राम राम रघुनन्दन राम राम ; श्री
राम राम भारताग्रज राम राम
श्री
राम राम रणककर्श राम राम ; श्री
राम राम शरण भाव राम राम '
विद्या
और ज्ञान प्राप्ति के लिए -
इस दिन सेवक के रूप में श्री विष्णु जी का स्मरण करना चाहिए और कहना चाहिए :-
ॐ नम:
पद्मनाभाय , दामोदराय
गोविन्दाय
नारायणाय
च केशवाय , मधुसूदनाय नमो
नमः
इन
विधियों से आपातकाम मनुष्य पुरुषार्थ चतुर्दशी को पूर्ण करके पूर्णायु भोगकर वैकुण्ठधाम को
प्राप्त करता है।



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