गोपाष्टमी पर पूजन करने से प्रसन्न होते हैं भगवान श्रीकृष्ण
दीपावली के बाद गोपाष्टमी का त्यौहार हिन्दू धर्म में सभी लोग मनाते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी को गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है। मुख्य रूप से यह त्योहार कृष्ण की नगरी में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने गौ चारण लीला शुरू की थी, जिसके कारण इसका नाम गोपाष्टमी पड़ा। यह पर्व दूसरे पर्व की तरह ही धूमधाम से मनाया जाता है। वैदिक धाम के संचालक पंडित पवन शर्मा के अनुसार गोपाष्टमी पर पूजन करने से भगवान श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं, उपासक को धन और सुख-समृ्द्धि की प्राप्ति होती है और घर-परिवार में लक्ष्मी का वास होता है।
गोपाष्टमी के दिन एक आस्था यह भी है कि इस दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़े पुण्य की प्राप्ति होती है। गोपाष्टमी हमारे निजी सुख और वैभव में हिस्सेदार होने वाले गौवंश का सत्कार है। यह पर्व ब्रज प्रदेश का मुख्य त्यौहार है। जो गऊओं को पालते हैं। वहां इसे प्रमुखता से मनाया जाता है। यह त्योहार धर्मनगरी में भी इसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन गौमाता की पूजा विधि-विधान से की जाती है। माना जाता है कि इस दिन गौमाता की पूजा करने से कामधेनु गाय की पूजा करने के बराबर फल मिलता है। जिससे परिवार में सुख-शांति रहती है। श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा करने और अपने भक्तों को दिए वचन को पूरा करने के लिए धरती पर अवतार लेकर गोसंवर्धन के लिए ही यह लीला की।
पंडित पवन शर्मा के अनुसार यह महोत्सव अति उत्तम फलदायक है। जो लोग नियम से कार्तिक स्नान करते हुए जप, होम, अर्चन का फल पाना चाहते हैं उन्हें गोपाष्टमी पूजन अवश्य करना चाहिए। इस दिन गाय, बैल और बछड़ों को स्नान करवा कर उन्हें सुन्दर आभूषण पहनाएं। यदि आभूषण सम्भव न हो तो उनके सींगों को रंग से सजाएं अथवा उन्हें पीले फूलों की माला से सजाएं। मान्यता के अनुसार इस दिन नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण को स्वतन्त्र रूप से गायों को वन में ले जाकर चराने की स्वीकृति दी थी।
गोपाष्टमी पूजन विधि-
पंडित पवन शर्मा के अनुसार इस दिन प्रात: काल में उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए। प्रात: काल में ही गायों को भी स्नान आदि कराकर गौ माता के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर सजाया जाना चाहिए। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। प्रात: काल में ही धूप-दीप अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारनी चाहिए। इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं। गायों को खूब सजाया जाता है। इसके बाद गाय को चारा आदि डालकर परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं। गाय को गोमाता भी कहा जाता है। गौशाला के लिए दान दें। गोधन की परिक्रमा करना अति उत्तम कर्म है। गोपाष्टमी को गऊ पूजा के साथ गऊओं के रक्षक ग्वाले या गोप को भी तिलक लगा कर उन्हें मीठा अवश्य खिलाएं।
गोपाष्टमी के दिन एक आस्था यह भी है कि इस दिन गाय के नीचे से निकलने पर बड़े पुण्य की प्राप्ति होती है। गोपाष्टमी हमारे निजी सुख और वैभव में हिस्सेदार होने वाले गौवंश का सत्कार है। यह पर्व ब्रज प्रदेश का मुख्य त्यौहार है। जो गऊओं को पालते हैं। वहां इसे प्रमुखता से मनाया जाता है। यह त्योहार धर्मनगरी में भी इसे बड़े स्तर पर मनाया जाता है। गोपाष्टमी के दिन गौमाता की पूजा विधि-विधान से की जाती है। माना जाता है कि इस दिन गौमाता की पूजा करने से कामधेनु गाय की पूजा करने के बराबर फल मिलता है। जिससे परिवार में सुख-शांति रहती है। श्रीमद्भागवत के अनुसार भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा करने और अपने भक्तों को दिए वचन को पूरा करने के लिए धरती पर अवतार लेकर गोसंवर्धन के लिए ही यह लीला की।
पंडित पवन शर्मा के अनुसार यह महोत्सव अति उत्तम फलदायक है। जो लोग नियम से कार्तिक स्नान करते हुए जप, होम, अर्चन का फल पाना चाहते हैं उन्हें गोपाष्टमी पूजन अवश्य करना चाहिए। इस दिन गाय, बैल और बछड़ों को स्नान करवा कर उन्हें सुन्दर आभूषण पहनाएं। यदि आभूषण सम्भव न हो तो उनके सींगों को रंग से सजाएं अथवा उन्हें पीले फूलों की माला से सजाएं। मान्यता के अनुसार इस दिन नन्द बाबा ने श्रीकृष्ण को स्वतन्त्र रूप से गायों को वन में ले जाकर चराने की स्वीकृति दी थी।
गोपाष्टमी पूजन विधि-
पंडित पवन शर्मा के अनुसार इस दिन प्रात: काल में उठकर नित्य कर्म से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए। प्रात: काल में ही गायों को भी स्नान आदि कराकर गौ माता के अंग में मेहंदी, हल्दी, रंग के छापे आदि लगाकर सजाया जाना चाहिए। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। प्रात: काल में ही धूप-दीप अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारनी चाहिए। इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं। गायों को खूब सजाया जाता है। इसके बाद गाय को चारा आदि डालकर परिक्रमा करनी चाहिए। परिक्रमा करने के बाद कुछ दूर तक गायों के साथ चलते हैं। गाय को गोमाता भी कहा जाता है। गौशाला के लिए दान दें। गोधन की परिक्रमा करना अति उत्तम कर्म है। गोपाष्टमी को गऊ पूजा के साथ गऊओं के रक्षक ग्वाले या गोप को भी तिलक लगा कर उन्हें मीठा अवश्य खिलाएं।




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